मजदूरी के दलदल में ख़त्म होता बचपन (Child Labour )

बचपन हमारे जीवन का वो हसीन पहलू जो इंसानी जिंदगी के  सफर का सबसे खूबसूरत समय है यह वो समय होता है जब हमे न किसी बात की चिंता रहती है और न ही कोई गम। कहां क्या हो रहा है क्या नहीं कोई परवाह नहीं , बिना किसी फ़िक्र और चिंता के अपनी मस्ती में मस्त रहना ही बचपन है किसी शायर ने क्या खूब लिखा है
child labour
बचपन 



                                              बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी
                                              अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है


आज हम इस post में बाल मजदूरी के बारे में बात करेंगे जिससे आप सब बहुत अच्छी तरह से वाकिफ होंगे
बाल मजदूरी ( child labour ) का सबसे बड़ा और मुख्य कारण गरीबी है माँ बाप के गरीब होने के कारण बच्चे पढ़ नहीं पाते और उन्हें घर चलाने  और पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है और जो एक बार मजदूरी के दलदल में फस जाता है फिर उसका वहां से लौटना लगभग नामुमकिन हो जाता है

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बचपन 


जनसंख्या का बढ़ना भी बाल मजदूरी को बढ़ावा देने का एक कारण है  क्योंकि जनसंख्या के बढ़ने से समाज में अशिक्षा बढ़ रही है इस कारण भी बहुत से बच्चे पढ़ नहीं पाते जिस कारण बाल मजदूरी और भिक्षावृति को बढ़ावा मिल रहा है आज दुनिया में लगभग 200 - 225 मिलियन बच्चे ऐसे है जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है जिनमे अधिकतर बच्चे पढ़ न पाने के कारण बाल मजदूरी करते है जिनका अधिकतर समय लोगो की झूठन साफ़ करने, सफाई करने ,और छोटे कारखानों में गुजरता है

दुनिया के अधिकतर गरीब देशो में यह स्थिति है पर भारत में यह स्थिति अपने चर्म पर है या फिर यह कहें की बहुत अधिक भयावह है  भारत में बच्चो को अनेक कुकृत्यों का सामना करना पड़ता है वैसे तो इनको रोकने के लिए अनेक कानून बनाये गए है यदि इन कानूनों का सख्ती से पालन किया जाये तो इस दलदल दे बचपन को बचाया जा सकता हे परन्तु फिर भी मुझे ऐसा लगता है की कहीं न कहीं कानून के  अलावा जागरूकता से भी   बाल मजदूरी को ख़त्म किया जा सकता है

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भारत सरकार द्वारा 1986 में चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया गया जिसके अंतर्गत बाल मजदूरी को एक अपराध माना गया और काम करने की निश्चित आयु 14 तय की गई आज सरकार ने आठवीं तक की शिक्षा को अनिवार्य तथा निशुल्क कर  दिया है  ताकि बच्चो के पढ़ने लिखने में सहायता की जा सके परन्तु फिर भी इस योजना से अधिक लाभ होता दिखाई नहीं दे रहा अधिकतर माँ बाप अपनी आमदनी कम हो जाने के डर से अपने बच्चो को स्कूल   नहीं भेजते है यहां पर बेरोजगारी , महंगाई और न्यूनतम मजदूरी दर का न मिलना भी किसी हद तक चाइल्ड लेबर को बढ़ावा देता है वैसे तो सरकार द्वारा समय समय पर महंगाई कम करने के आंकड़े दिए जाते है परन्तु तह आंकड़े कितने  सही होते है इस बात को आप बेहतर तरीके  से जानते है इसी प्रकार सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी दर  तय कर  दी गई है परन्तु यह केवल दिखावे मात्र के लिए ही है देश के छोटे कारखानों में इस मजदूरी दर  का केवल आधा हिस्सा ही दिया जाता है

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उदहारण के लिए आप पानीपत को ही ले लीजिये हैंडलूम मार्किट के नाम से पुरे देश में अपनी पहचान बनाने वाला यह जिला प्रख्यात है  परन्तु यदि न्यूनतम मजदूरी दर की बात की जाये तो यहां कुछ और ही हलचल है
ना कोई देखने वाला ना कोई सुनने वाला सिर्फ कागज़ी कार्यवाही तक ही यह न्यूनतम मजदूरी दर सिमट कर  रह जाती है धरती के बारे में 32 रोचक जानकारी

माना जा रहा है की लगभग 60  मिलियन बच्चे  आज इस मजदूरी का शिकार है और आने वाली समय में यदि हम जागरूक न हुए और इसके लिए कड़े कदम नहीं उठाये गए तो यह स्थिति और भी भयावह होगी
सरकार  को भी इसके लिए अब अपनी आँख खोलनी होगी




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Amit Sharma

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