बैंकिंग सेक्टर में एनपीए यानि नॉन परफॉर्मिंग एसेट हमेशा से चर्चा का विषय बना रहता है, एनपीए के चलते बैंकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल जब बैंक किसी को लोन देता है और वह बैंक को कुछ समय बाद उस लोन पर ब्याज देना और फिर किश्तें देना बंद कर देता है तो बैंक उसे एक निश्चित समय सीमा के बाद एनपीए घोषित कर देता है। साधारण भाषा में कहें तो बैंक का यह पैसा एक तरह से उसके पास से दूर चला जाता है और बैंक के पास उस पैसे का कोई लाभ नहीं मिलता है। नियमानुसार किसी भी लोन की किश्त, मूलधन और ब्याज अगर 90 दिन से अधिक तक बैंक को नहीं मिलता है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है।
क्या होता है एनपीए
NPA , ये एक ऐसा Word है जो इंडिया में बहुत ही ज्यादा चर्चित है क्योकि पहले ललित मोदी , फिर विजय माल्या और अब नीरव मोदी और ऊपर से जब इकनोमिक टॉपिक पर बात होती है तो सबसे ज्यादा यही टॉपिक होता है की इस बैंक में इतने NPA account है तो उस बैंक में उतने NPA है तो आईये इस पोस्ट में इसके बारे में समझते है की ये क्या है आखिर में हम सब इससे कैसे प्रभावित होते है
|NPA का फुल फॉर्म होता है – Non-Performing Asset, इसका मतलब ये हुआ की ऐसा asset जो अब किसी काम का नही है और बैंक उस asset को वापस लेन में सक्षम नही है और उसे हम NPA कहते है लेकिन यहाँ पर आप सोच रहे होंगे की बैंक तो पैसा देता है लोन के रूप में तो asset कैसे हो गया तो आपको ये जानकारी दे दू की , लोग जो पैसा लोन के रूप में ब्याज पर बैंक से लेते है तो बैंकिंग term में उस पैसे को asset माना जाता है
एनपीए के चलते बैंकों को मिलने वाला लाभ कम हो जाता है, जिससे सरकार के पास राजस्व कम पहुंचता है, ऐसे में सरकार की निवेश करने की क्षमता में गिरावट आती है और देश के विकास की रफ्तार कम हो जाती है, साथ ही बेरोजगारी की समस्या बढ़ती है। लिहाजा इस स्थिति से निपटने के लिए बैंक अपनी ब्याज दर को बढ़ाता है ताकि वह इस नुकसान की भरपाई कर सके।
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